تک درختي به دشت «مَرغابست» | | کـــه درآن مُرغي آشيـــــان دارد! |
مُــرغ اسطـوره اي بـود ايـن مُــرغ | | کـــز بسي قرنـــها نشـــــان دارد! |
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خـــــواب ديـدم کــه ايـن پرنـدۀ پيـر | | نــــاله ها مي کند شبي، جانسوز! |
آن چنان دل شکـاف کـاندر خـواب | | بــــــود از بهــرمــن ملال اندوز! |
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گفتم اي مرغ ناله هــات زچـيسـت؟ | | کــه بــه ژرفــــاي دل کند تــأثير! |
شمـّـــه اي بهـرمن حکــــــايت کـن | | کــــآتشم زد نـوايت از بـم و زير! |
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گفت نــــــــالان زبهر«مَــرغــابم» | | بـرهمـه مـرز و بـوم «پازَرگاد»! |
کـــه تهي مي کننـدش از ســرجهـل | | زآنچـه ميـراث بـــاشـدش دريــاد! |
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آنچــه در زيـــرخـاک مدفون اسـت | | ازتبـــــــار گــــرانتــريــن آثـــار! |
زيــر آبـش کنند و پـس نــــــــــابـود | | عدّه اي عاري از حميّت وعـــار! |
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«سّــد سيـــــوند» را کننـد احـــداث | | تــا کــه ايــن دشـت را کنند آبــاد! |
لاجـــرم از مفــــــــــاخــرِ تــــاريخ | | قسمتي نخبـــه را دهنـد بـــه بــاد! |
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هــرچـــه در«تنگه بلاغي» هسـت | | از گــرانتـر نفـــــايـس تـــاريـــخ! |
جملـه بـــاشد وديعه هـــاي عــزيــز | | کـــــاين ودايع برافکنند از بيـــخ! |
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اين چه آبــــادي است ويــراني ست | | محو آثـــــاري از هويّت مــاست! |
شرف و آبرو به نــان که فروخت؟ | | جز حقيري کـه کمترينه گـداست! |
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ايـن امـــانـــات کــــز نياکـــــانسـت | | بـه چـه حق مي کنند جمله تبـــاه؟ |
بي حيـــايي ازايـن فزون تـرنيسـت | | کــو حيـايي به قدر يک پَرِ کـــاه؟ |
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مــا گـــر از بــــاستـان جـدا مــانيـم | | از هويـّــت دچـــــــــار کمبوديــم! |
در کـف حــادثــاتِ جـــان فرســاي | | پــــــاي دربنـد و دستفـرمــوديــم! |
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کـَــم کـَـمَـک نــــم بگـستـرانـد پـَــر | | تـــــــا بـــه آرامگــاهِ کورشِ راد! |
وانـگـه آن يــادگــارشــوکـت وفـــَر | | محو گردد به کـــــام دشمن ِ شاد! |
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واي واي ازچنيـن فجــــــايع شـــوم | | که کند عورمان زحشمت وجــاه! |
شـَـــــرَفِ مـلّـي و کــــــــلاه مـِـهـي | | از سَــرِ مــا فِتـَد بـــه گــورسيــاه! |